भारत में 65 साल से सरकार की नीति बनाने वाला योजना आयोग अब बीती बात हो गया है. उसकी जगह नई संस्था नीति आयोग ने ले ली है. विपक्ष ने इसे दुरनीति आयोग की संज्ञा दी है.
नए साल के पहले दिन से नयी संस्था नीति आयोग या राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान ने ले ली है. यह संस्था केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बौद्धिक संस्थान के तौर पर काम करेगी और इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे.
नीति आयोग में एक संचालन परिषद होगी. इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा उप राज्यपाल शामिल होंगे. यह सहयोगपूर्ण संघवाद के लिए कार्य करेगा तथा केंद्र और राज्यों को ‘राष्ट्रीय एजेंडा’ प्रदान करेगा.
इस संस्था में प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाने वाला एक मुख्य कार्यकारी और एक उपाध्यक्ष होगा. इसके अलावा कुछ पूर्णकालिक सदस्य और दो अंशकालिक सदस्य होंगे जबकि चार केंद्रीय मंत्री इसके पदेन सदस्य होंगे.
समाजवादी दौर के संस्थान के तौर पर जाने जाने वाले योजना आयोग में एक उपाध्यक्ष होता था. इसके अलावा विशिष्ट क्षेत्रीय परिषदें होंगी जबकि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ प्रधानमंत्री द्वारा विशेष तौर पर आमंत्रित किए जाएंगे.
एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि नीति आयोग सरकार के लिए ‘‘एक दिशा निर्धारक और नीति प्रोत्साहक’’ बौद्धिक संस्थान का काम करेगा. यह केंद्र तथा राज्य सरकारों को नीतिगत मामलों पर रणनीतिक और तकनीकी परामर्श देगा. इनमें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्थिक मुद्दे शामिल होंगे.
नीति आयोग में एक संचालन परिषद होगी. इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा उप राज्यपाल शामिल होंगे. यह सहयोगपूर्ण संघवाद के लिए कार्य करेगा तथा केंद्र और राज्यों को ‘राष्ट्रीय एजेंडा’ प्रदान करेगा.
इस संस्था में प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाने वाला एक मुख्य कार्यकारी और एक उपाध्यक्ष होगा. इसके अलावा कुछ पूर्णकालिक सदस्य और दो अंशकालिक सदस्य होंगे जबकि चार केंद्रीय मंत्री इसके पदेन सदस्य होंगे.
समाजवादी दौर के संस्थान के तौर पर जाने जाने वाले योजना आयोग में एक उपाध्यक्ष होता था. इसके अलावा विशिष्ट क्षेत्रीय परिषदें होंगी जबकि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ प्रधानमंत्री द्वारा विशेष तौर पर आमंत्रित किए जाएंगे.
एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि नीति आयोग सरकार के लिए ‘‘एक दिशा निर्धारक और नीति प्रोत्साहक’’ बौद्धिक संस्थान का काम करेगा. यह केंद्र तथा राज्य सरकारों को नीतिगत मामलों पर रणनीतिक और तकनीकी परामर्श देगा. इनमें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्थिक मुद्दे शामिल होंगे.
नीति आयेग का गठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगस्त 2014 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर की गई घोषणा के बाद किया गया है. प्रधानमंत्री ने कहा था कि आर्थिक हालात में बदलाव के मद्देनजर योजना आयोग की जगह एक नयी संस्था खड़ी करने की जरूरत है. |
सरकार ने मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के जरिए योजना आयोग की जगह एक नयी संस्था के गठन का प्रस्ताव किया था जिसमें महात्मा गांधी, बी आर अंबेडकर, स्वामी विवेकानंद और दीनदयाल उपाध्याय जैसे राष्ट्रपुरषों के विचारों को उद्धृत किया गया है.
नीति आयोग में दो अंशकालिक सदस्य प्रमुख विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों से लिए जाएंगे. पूर्णकालिक सदस्यों की संख्या के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है.
प्रस्ताव के मुताबिक नीति आयोग प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लिए राष्ट्रीय एजेंडा प्रदान करेगा ताकि ‘मजबूत राज्य से ही मजबूत राष्ट्र बनता है’ की धारणा के आधार पर सहयोगपूर्ण संघवाद की अवधारणा को मजबूत किया जा सके.
आयोग अन्य राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय बौद्धिक संस्थाओं के साथ-साथ संपर्क तथा शैक्षणिक तथा नीतिगत अनुसंधान संस्थानों के साथ भी संपर्क रखेगा. नीति आयोग का गठन राज्यों, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों और संस्थानों समेत संबद्ध पक्षों के साथ गहन परामर्श के बाद किया गया है.
नयी संस्था का गठन केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के जरिए किया गया है. योजना आयोग का गठन भी इसी तरह मंत्रिमंडल के प्रस्ताव से 15 मार्च 1950 को किया गया था. बयान में कहा गया है कि नीति आयोग जनता को जोड़कर शासन-व्यवस्था के संचालन, अवसरों की समानता और प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाने के संबंध में महत्वपूर्ण दिशानिर्देशक और रणनीतिक सुझाव देगा.
नीति आयोग का मुख्य ध्येय कारगार शासन व्यवस्था के लिए नए नये विचारों की पौधशाला के रूप में काम करना होगा. नयी संस्था का उद्देश्य राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों के संबंध में साझा दृष्टि तैयार करना है. यह ऐसी प्रणाली विकसित करेगी ताकि ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजनाएं बनाई जा सकें और इन्हें सरकार के उच्चतर स्तरों से जोड़ा जा सके.
यह संस्था यह सुनिश्चित करेगी कि जो भी विषय उसके पास आएगा उस पर विचार करते समय आर्थिक रणनीति तथा नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा के हित शामिल हों. यह समाज के उन तबकों पर विशेष ध्यान देगा जिन तक आर्थिक प्रगति से पर्याप्त लाभ नहीं पहुंचने का जोखिम है.
आयोग रणनीति एवं दीर्घकालिक नीति और कार्यक्रमों तथा पहलों का खाका तैयार करेगा और उनकी प्रगति व क्षमता की निगरानी करेगा. यह आयोग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ जुड़कर ज्ञान, नव-प्रवर्तन तथा उद्यमशीलता में सहयोग की प्रणाली तैयार करेगा.
आयेग विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न विभागों के बीच के मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच होगा ताकि विकास के एजेंडे का कार्यान्वयन तेज किया जा सके.
संस्थान के पास एक आधुनिक रिसोर्स (संसाधन) केंद्र होगा और यह सुशासन तथा सर्वोत्तम कार्यपद्धति और समतापूर्वक विकास संबंधी विषयों पर अनुसंधान का भंडार होगा और सम्बद्ध पक्षों के बीच इन अनुसंधानों का प्रसार करेगा. यह सक्रिय रूप से कार्यक्रमों और पहलों के कार्यान्वयन की निगरानी और आकलन करेगा ताकि सफलता की संभावना और आपूर्ति का दायरा बढ सके.
नयी संस्था प्रौद्योगिकी उन्नयन पर भी ध्यान देगी. इसके अलाव यह ऐसी गतिविधियां भी करेगी जो राष्ट्रीय विकास एजेंडे के कार्यान्वयन के जरिए जरूरी हों और जो इसके लिए निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप हो. नीति आयोग की स्थापना के संबंध में तर्क देते हुए मंत्रिंमडल के प्रस्ताव में कहा गया कि भारत की जनता को अपनी भागीदारी के जरिए प्रगति और शासन-प्रणाली में सुधार के प्रति बहुत उम्मीद है.
विपक्ष ने बताया, नीति नहीं दुरनीति आयोग
योजना आयोग के पुनर्गठन को लेकर विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. विपक्ष का कहना है यह नीति नहीं ‘‘दुर्नीति’’ है. विपक्ष ने इस फैसले की आलोचना करते हुए आशंका जताई कि इससे राज्यों के साथ भेद-भाव होगा तथा नीति बनाने में कार्पोरेट्स की चलेगी.
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने योजना आयोग का नाम बदले जाने को ‘‘दुर्नीति’’ बताया. उन्होंने कहा कि अगर सरकार साल 2015 के पहले दिन जनता का ‘सतही और दिखावटी’’ बातों से ‘अभिनंदन’ करना चाहती है तो कुछ नहीं कहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से पता चलता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय की राजकोषीय और मौद्रिक उद्देश्यों के लिए दृष्टि बहुत छोटी है.
येचुरी ने कहा कि ऐसी आशंका है कि नीति आयोग राज्यों और केंद्र के बीच विवाद की स्थिति में अंतिम फैसला करेगा और इससे राज्यों के साथ भेद-भाव होगा.
कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी कहा कि अंतत: नीति आयोग की ही चलेगी और इससे राज्यों के साथ भेद-भाव हो सकता है. तिवारी ने कहा, ‘‘आखिर योजना आयोग क्या कर रहा था ! वह योजनाएं बनाता था. ऐसे में योजना आयोग का नाम बदल कर नीति आयोग करके यह सरकार क्या संदेश देने का प्रयास कर रही है.’’ उन्होंने कहा कि योजना आयोग के पुनर्गठन का विरोध कांग्रेस ने सैद्धांतिक आधार पर किया था.
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, ‘‘यह लड़ाई लडने का सवाल नहीं था, बल्कि यह सिद्धांतों की बात थी. विपक्ष में रहते भाजपा संघवाद की बढ-चढ कर बात करती थी और अब सत्ता में आने पर वह इसके एकदम उलट कर रही है.
नीति आयोग में दो अंशकालिक सदस्य प्रमुख विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों से लिए जाएंगे. पूर्णकालिक सदस्यों की संख्या के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है.
प्रस्ताव के मुताबिक नीति आयोग प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लिए राष्ट्रीय एजेंडा प्रदान करेगा ताकि ‘मजबूत राज्य से ही मजबूत राष्ट्र बनता है’ की धारणा के आधार पर सहयोगपूर्ण संघवाद की अवधारणा को मजबूत किया जा सके.
आयोग अन्य राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय बौद्धिक संस्थाओं के साथ-साथ संपर्क तथा शैक्षणिक तथा नीतिगत अनुसंधान संस्थानों के साथ भी संपर्क रखेगा. नीति आयोग का गठन राज्यों, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों और संस्थानों समेत संबद्ध पक्षों के साथ गहन परामर्श के बाद किया गया है.
नयी संस्था का गठन केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के जरिए किया गया है. योजना आयोग का गठन भी इसी तरह मंत्रिमंडल के प्रस्ताव से 15 मार्च 1950 को किया गया था. बयान में कहा गया है कि नीति आयोग जनता को जोड़कर शासन-व्यवस्था के संचालन, अवसरों की समानता और प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाने के संबंध में महत्वपूर्ण दिशानिर्देशक और रणनीतिक सुझाव देगा.
नीति आयोग का मुख्य ध्येय कारगार शासन व्यवस्था के लिए नए नये विचारों की पौधशाला के रूप में काम करना होगा. नयी संस्था का उद्देश्य राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों के संबंध में साझा दृष्टि तैयार करना है. यह ऐसी प्रणाली विकसित करेगी ताकि ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजनाएं बनाई जा सकें और इन्हें सरकार के उच्चतर स्तरों से जोड़ा जा सके.
यह संस्था यह सुनिश्चित करेगी कि जो भी विषय उसके पास आएगा उस पर विचार करते समय आर्थिक रणनीति तथा नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा के हित शामिल हों. यह समाज के उन तबकों पर विशेष ध्यान देगा जिन तक आर्थिक प्रगति से पर्याप्त लाभ नहीं पहुंचने का जोखिम है.
आयोग रणनीति एवं दीर्घकालिक नीति और कार्यक्रमों तथा पहलों का खाका तैयार करेगा और उनकी प्रगति व क्षमता की निगरानी करेगा. यह आयोग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ जुड़कर ज्ञान, नव-प्रवर्तन तथा उद्यमशीलता में सहयोग की प्रणाली तैयार करेगा.
आयेग विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न विभागों के बीच के मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच होगा ताकि विकास के एजेंडे का कार्यान्वयन तेज किया जा सके.
संस्थान के पास एक आधुनिक रिसोर्स (संसाधन) केंद्र होगा और यह सुशासन तथा सर्वोत्तम कार्यपद्धति और समतापूर्वक विकास संबंधी विषयों पर अनुसंधान का भंडार होगा और सम्बद्ध पक्षों के बीच इन अनुसंधानों का प्रसार करेगा. यह सक्रिय रूप से कार्यक्रमों और पहलों के कार्यान्वयन की निगरानी और आकलन करेगा ताकि सफलता की संभावना और आपूर्ति का दायरा बढ सके.
नयी संस्था प्रौद्योगिकी उन्नयन पर भी ध्यान देगी. इसके अलाव यह ऐसी गतिविधियां भी करेगी जो राष्ट्रीय विकास एजेंडे के कार्यान्वयन के जरिए जरूरी हों और जो इसके लिए निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप हो. नीति आयोग की स्थापना के संबंध में तर्क देते हुए मंत्रिंमडल के प्रस्ताव में कहा गया कि भारत की जनता को अपनी भागीदारी के जरिए प्रगति और शासन-प्रणाली में सुधार के प्रति बहुत उम्मीद है.
विपक्ष ने बताया, नीति नहीं दुरनीति आयोग
योजना आयोग के पुनर्गठन को लेकर विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. विपक्ष का कहना है यह नीति नहीं ‘‘दुर्नीति’’ है. विपक्ष ने इस फैसले की आलोचना करते हुए आशंका जताई कि इससे राज्यों के साथ भेद-भाव होगा तथा नीति बनाने में कार्पोरेट्स की चलेगी.
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने योजना आयोग का नाम बदले जाने को ‘‘दुर्नीति’’ बताया. उन्होंने कहा कि अगर सरकार साल 2015 के पहले दिन जनता का ‘सतही और दिखावटी’’ बातों से ‘अभिनंदन’ करना चाहती है तो कुछ नहीं कहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से पता चलता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और वित्त मंत्रालय की राजकोषीय और मौद्रिक उद्देश्यों के लिए दृष्टि बहुत छोटी है.
येचुरी ने कहा कि ऐसी आशंका है कि नीति आयोग राज्यों और केंद्र के बीच विवाद की स्थिति में अंतिम फैसला करेगा और इससे राज्यों के साथ भेद-भाव होगा.
कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी कहा कि अंतत: नीति आयोग की ही चलेगी और इससे राज्यों के साथ भेद-भाव हो सकता है. तिवारी ने कहा, ‘‘आखिर योजना आयोग क्या कर रहा था ! वह योजनाएं बनाता था. ऐसे में योजना आयोग का नाम बदल कर नीति आयोग करके यह सरकार क्या संदेश देने का प्रयास कर रही है.’’ उन्होंने कहा कि योजना आयोग के पुनर्गठन का विरोध कांग्रेस ने सैद्धांतिक आधार पर किया था.
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, ‘‘यह लड़ाई लडने का सवाल नहीं था, बल्कि यह सिद्धांतों की बात थी. विपक्ष में रहते भाजपा संघवाद की बढ-चढ कर बात करती थी और अब सत्ता में आने पर वह इसके एकदम उलट कर रही है.
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